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अंदाज़ तेरे मुकरने का

तेरे  शहर में रहना न आया मुझे।

अंदाज़ तेरा मुकरने का न भाया मुझे।

घने शज़र हैं तेरे शहर की राहों में।
एक पत्ता भी दे सका कभी न छाया मुझे।

तरसते रह गए लबों से तू कभी आवाज़ दे। 
अपनी गलियों में कभी बुलाया न मुझे।

तेरे हर अंदाज़ को हम कातिल समझ बैठे।
तेरी तल्ख बातों पर यकीं न आया मुझे।

असरार आँखो की देख कुछ और सोच बैठे।
तकरीर ने तेरी कभी ढाँढस बँधाया न मुझे।

ज़िंदान में कैद हो गए मसल्लस तेरे इश्क़ के।
यादों के कफ़स से निकलना कभी  आया न मुझे।

लोग कहते दर्द बेइंतिहा मिला तुझे सनम से।
देता ज़वाब कि उसने कभी भी सताया न मुझे।

शज़र -पेड़,  तकरीर बातचीत , कफ़स पिंजरा, ज़िंदान - पिंजरा

स्नेहलता पाण्डेय \\'स्नेह\\'


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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

19-Nov-2021 04:41 PM

बहुत खूबसूरत

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Swati chourasia

18-Nov-2021 10:48 PM

Very beautiful 👌

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